Sunday, October 9, 2011

तो क्या बात है ...

किताबों के पन्ने पलट के सोचता हूँ यू ही पलट जाये ज़िन्दगी तो क्या बात है.
ख़्वाबों मैं जो रोज़ मिलती है, वो हकीकत मैं आये तो क्या बात है.
कुछ मतलब के लिए ढूंढ़ते है सब मुझको, बिन मतलब जो आये तो क्या बात है.
कत्ल कर के तो सब ले जायेंगे दिल मेरा, कोई बातों से ले जाये तो क्या बात है.
जो शरीफों की सराफत मैं बात न हो, एक शराबी कह जाये तो क्या बात है.
अपने रहने तक तो ख़ुशी दूंगा सबको, जो किसी को, मेरी मौत पर ख़ुशी मिल जाये तो क्या बात
है.

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